मौन रहकर हम अपनी भावनाओं को कब तक छुपा सकते हैं। सच को हमे बताने से ज्यादा स्वीकार करना पडता है। कभी कभी तो लगता है जैसे हमें वरण के साथ साथ सहज जीने की भी इजाजत नही है।
कुछ शब्द
उथली पडी़ सारी
जमीन
भीग गयी है
बरसों बाद
फिर से।
केले के
फूलों की तरुणाई
कई सालों
के बाद
इतनी रुमानी है।
पता नही है
कि यह जादू
बारिश का है
या
मिटने से पहले
जी लेने की
जिजीविषा है।
Friday, September 7, 2007
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